HP Government Employees: तबादला आदेश को चुनौती देने से पहले देनी होगी ज्वाइनिंग

HIGH COURT

सरकारी कर्मचारियों को अपने तबादला आदेश को चुनौती देने से पहले नए स्थान पर अपनी ज्वाइनिंग देनी होगी। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने तबादला नीति में जोड़े गए नए प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि तबादला आदेश की अवहेलना कर कोई कर्मचारी अपनी शिकायतों को व्यक्त करने के लिए सीधे न्यायालय में नहीं जा सकता।

 

न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्त्ता का यह कर्त्तव्य है कि वह सबसे पहले उस कार्यस्थल पर रिपोर्ट करे जहां उसका तबादला हुआ है और फिर अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के बारे में विभागाध्यक्ष के समक्ष अभ्यावेदन करे।

 

कोर्ट ने कहा कि नए नियुक्ति स्थल पर रिपोर्ट न करने और मुकद्दमेबाजी में लिप्त होने की ऐसी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि एक आज्ञाकारी सेवक के रूप में याचिकाकर्त्ता को कोर्ट में आने से पहले नए नियुक्ति स्थल पर कार्यभार ग्रहण करना चाहिए था।

 

प्रार्थी का आरोप था कि उसका तबादला बाहरी लोगों के दबाव में करते हुए सरकार ने वास्तव में एक ईमानदार अधिकारी को दंडित किया है। इस दलील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि एक सरकारी कर्मचारी को ईमानदार होना चाहिए। किसी भी कर्मचारी को ईमानदारी आवश्यकता के रूप में अपने अंदर रखनी चाहिए।

 

कोर्ट ने कहा कि प्रभावित कर्मचारी को अदालत की बजाय विभाग के उच्च अधिकारियों से संपर्क करना चाहिए। किसे कहां और किस तरीके से स्थानांतरित किया जाना चाहिए, यह उचित प्राधिकारी को तय करना है। न्यायालयों और न्यायाधिकरणों से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वे अधिकारियों को “उचित स्थान” पर स्थानांतरित करके प्रशासनिक प्रणाली के कामकाज में बाधा डालें, उचित निर्णय लेना प्रशासन का काम है।

कोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि स्थानांतरण सेवा का एक दायित्व है और जब तक अथॉरिटी प्रशासनिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए और सार्वजनिक हित को सर्वोपरि मानते हुए कार्य करती है, तब तक उसके पास निश्चित अनुशासन के अधीन स्थानांतरण करने की असीमित शक्तियां हैं।

 

मामले के अनुसार याचिकाकर्त्ता रामेश्वर चौधरी का तबादला बतौर खंड विकास अधिकारी, छोहारा (चिड़गांव) जिला शिमला से चुराग, जिला मंडी को किया गया है। प्रार्थी ने इस आदेश को चुनौती देते हुए 13 फरवरी 2025 के कार्यालय ज्ञापन को कानून और न्याय के हित में रद्द करने की मांग की थी।

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