Samuel Evans Stokes and Baba Kanshiram
अमेरिका से आए सैमुअल इवांस स्टोक्स ने शिमला पहाड़ियों के ऊपरी भाग कोटगढ़ को अपना निवास स्थान बनाया। गाँधी जी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने बेगार की प्रथा के विरुद्ध पहाड़ी रियासतों में आंदोलन शुरू किया। उन्होंने हिन्दू धर्म अपनाकर अपना नाम सत्यानंद स्टोक्स रख लिया।
असहयोग आंदोलन में शामिल होने पर उन्हें बंदी बना लिया गया। 24 मार्च, 1923 को अन्य लोगों के साथ उन्हें शिमला में कैथू जेल से रिहा किया गया। तत्पश्चात् उन्होंने अपना समाज सुधार और राजनैतिक जागृति का कार्यक्रम जारी रखा। 1927 ई. में सुजानपुर ताल के पास हुए एक सम्मेलन में बलोच सिपाहियों ने लोगों को बुरी तरह से पीटा और उनकी गाँधी टोपी छीन ली।

इस मारपीट में ठाकुर हजारा सिंह, बाबा कांशीराम, गोपाल सिंह और चतुर सिंह आदि भी शामिल थे। इस घटना से खिन्न होकर बाबा कांशीराम ने शपथ ली कि जब तक भारत स्वतंत्र नहीं होता, वह काले कपड़े पहनेंगे। बाबा कांशीराम और हजारा सिंह का कांग्रेस के आंदोलन में अतुलनीय योगदान रहा ।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1937 ई. में गदड़िवाला जनसभा में बाबा कांशीराम को ‘पहाड़ी गाँधी’ का उपाधि दी। बाबा कांशीराम को सरोजिनी नायडू ने ‘पहाड़ी बुलबुल’ की उपाधि थी।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
महात्मा गाँधी ने 27 फरवरी, 1930 को देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करने की घोषणा की। इस आंदोलन में शिमला और काँगड़ा के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।
20 जुलाई, 1930 तक शिमला में 494 सत्याग्राही पकड़े गए। इन सभी को दंड देकर शिमला, अंबाला, लुधियाना, मुल्तान, लाहौर, मोंटगुमरी और अमृतसर की जेलों में भेज दिया गया। वहीं, अक्टूबर 1930 तक कांगड़ा में 700 सत्याग्राहियों को गिरफ्तार किया गया।
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