संसारचंद (Sansarchand) (1775-1823 ई.) काँगड़ा का सबसे शक्तिशाली राजा था। वह 1775 ई. में काँगड़ा का राजा बना। उसने 1786 ई. में ‘नेरटी शाहपुर’ युद्ध में चम्बा के राजा को हराया। वर्ष 1786 से 1805 ई. तक का काल संसारचंद के लिए स्वर्णिम काल था। उसने 1786 ई. में काँगड़ा किले पर कब्जा किया। हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों से सिखों के चले जाने और किला वापस मिल जाने के पश्चात् संसारचन्द पहाड़ों में सर्वोच्च सत्ता बनाने का प्रयत्न करने लगा और उसने आस-पास के राजाओं को अपना करदाता बना लिया।
उसने 1801 ई. में रानी सदाकौर के बटाला के निकट के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। लाहौर का महाराजा रणजीत सिंह स्वयं एक विशाल सेना लेकर बटाला पहुँच गया। नूरपुर और नौसेहरा पर उन्होंने अधिकार कर लिया। 1804 ई. में संसारचन्द ने होशियारपुर और बजवाड़ा के क्षेत्रों पर आक्रमण किया परन्तु जब रणजीत सिंह की सेना इन क्षेत्रों में पहुँची, तब संसारचंद को पुनः वापस लौटना पड़ा। पहाड़ी शासकों के संघ ने कहलूर के राजा के माध्यम से गोरखा अमरसिंह थापा को राजा संसारचन्द पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया।

1804 ई. तक गोरखों ने अपना राज्य गंगा से सतलुज तक फैला लिया था, जिसमें पूरा कुमाऊँ, गढ़वाल, सिरमौर तथा बारह और अट्ठारह ठाकुराइयाँ जिन्हें बाद में शिमला हिल्स कहा गया, सम्मिलित थीं। यह आमन्त्रण स्वीकार कर 40,000 की सेना लेकर अमरसिंह थापा 1805 ई. में संसारचन्द को परास्त करने चल पड़ा। पहला मुकाबला महल मोड़ियाँ में हुआ, जहाँ संसारचन्द ने वीरता से मुकाबला किया परन्तु वह पराजित हुआ। उसने परिवार सहित काँगड़ा के किले में शरण ली। गोरखों ने दो वर्ष तक इस किले को घेरे रखा।
रणजीत सिंह से सहायता लेने और गोरखों को सतलुज के दाईं ओर के अपने राज्य से पीछे धकेलने के लिए अपने छोटे भाई फतेहचन्द को उनके पास भेजा। राजा संसारचन्द चुपके से किले से निकलकर रणजीत सिंह से मिलने ज्वालामुखी पहुँचा। ज्वालामुखी के मन्दिर में दोनों राजा मिले और संसारचन्द की शर्तें मान ली गई तथा रणजीत सिंह ने संसारचन्द को हानि न पहुँचाने का वचन दिया। 1809 ई. में रणजीत सिंह की सेनाओं ने गोरखों पर आक्रमण किया जिसमें गोरखे पराजित हुए और सतलुज के पूर्व की ओर धकेल दिए गए। तब राजा संसारचन्द और रणजीत सिंह हाथी की सवारी करते हुए किले तक पहुँचे।

रणजीत सिंह ने राज्य के स्वामित्व की लिखित जमानत संसारचन्द (Sansarchand) को दी परन्तु मुगलों के काल में किले से जुड़े क्षेत्र को नहीं दिया। देसा सिंह मजीठिया को किले का नया किलेदार नियुक्त किया गया और संसारचन्द का मान-सम्मान किया। महाराजा रणजीत सिंह ज्वालामुखी गए और मन्दिर के पुजारियों को उन्होंने बड़ी राशि दान में दी। पहाड़ी रियासतों से नजराना प्राप्त करके वे जालन्धर लौट गए।
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