गाँधी-इरविन समझौता
वायसराय लॉर्ड इरविन ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को समाप्त करने के संबंध में मार्च 1931 में महात्मा गाँधी को समझौता करने के लिए शिमला बुलाया। गाँधी जी के साथ जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, मदन मोहन मालवीय और डॉ. अंसारी भी थे। 5 मार्च को गाँधी व इरविन के बीच समझौता हुआ।
व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन
महात्मा गाँधी ने 17 अक्टूबर, 1937 को व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया। पंडित पद्मदेव, कांग्रेस के प्रधान श्याल लाल खन्ना और महामंत्री सालिग राम शर्मा आदि शिमला में इस आंदोलन में भाग लेने वाले प्रमुख व्यक्ति थे। पहाड़ी क्षेत्र में इस आंदोलन का नारा ‘न भाई दो, न पाई दो’ की खूब गूंज रही। बाद में इस नारे को पंडित पद्मदेव ने ‘भाई दो न पाई दो’ कर दिया। उन्होंने गंज में जनसभा की और भाषण दिए । पुलिस ने उनको पकड़कर कैथू जेल में बंद कर दिया। बाद में 18 महीने की सजा देकर उनको लुधियाना और गुजरात की जेलों में रखा गया।
नवंबर 1940 में काँगड़ा क्षेत्र में व्यक्तिगत सत्याग्रह के संचालन के लिए एक समिति का गठन किया गया। इस समिति में ठाकुर हजारा सिंह, पंडित परसराम तथा ब्रह्मानंद मुख्य थे। काँगड़ा में लाला मंगतराम खन्ना प्रमुख व्यक्ति थे। अप्रैल 1941 में ‘भाई दो न पाई दो’ का नारा लोकप्रिय आंदोलन के रूप में । प्रसिद्ध हुआ। गाँधी जी ने 4 दिसंबर, 1941 को यह आंदोलन स्थगित कर दिया। इसके बाद गिरफ्तार किए गए सभी नेताओं को रिहा कर दिया गया।
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