Medieval History of Himachal: Tughlaq Dynasty

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हिमाचल का मध्यकालीन इतिहास: तुगलक वंश

मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1352 ई.) ने 1337 ई. में नागरकोट के राजा पृथ्वीचंद को पराजित करने के लिए सेना भेजी थी जिसका उसने स्वयं नेतृत्व किया। सुल्तान ने स्वयं 1337 ई. में | इस अभियान का नेतृत्व किया। सिरात-ए-फिरोजशाही के अनुसार उसने इस अवसर पर महान् धार्मिक सहिष्णुता का परिचय दिया और ज्वालामुखी मन्दिर को नष्ट नहीं किया।

 

फिरोजशाह तुगलक (1351-1388) ने काँगड़ा के राजा रूपचंद को सबक सिखाने के लिए 1361 ई. में नागरकोट पर आक्रमण कर घेरा डाला। ‘तारीख-ए-फिरोज फरिस्ता’ और ‘तारीख-ए-फिरोजशाही‘ में काँगड़ा अभियान और नागरकोट पर घेरे का जिक्र मिलता है। राजा रूपचंद और फिरोजशाह तुगलक का बाद में समझौता हो गया और नागरकोट पर से घेरा उठा लिया गया।

 

रूपचंद ने फिरोजशाह तुगलक की अधीनता स्वीकार करते हुए संधि कर ली। इस संधि के बाद फिरोजशाह तुगलक ज्वालामुखी गया। | वहाँ पहुँचकर पहले तो उसने मूर्ति को जलाने की सोची, परन्तु वहाँ के राजाओं से सन्धि होने के पश्चात् उसने यह विचार त्याग दिया। | इस मन्दिर में 1,300 पुस्तकों का एक पुस्तकालय था। सुल्तान इन पुस्तकों को अपने साथ ले गया और इनमें से कुछ का अनुवाद भी कराया।

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Medieval History of Himachal: Tughlaq Dynasty

समय के प्रसिद्ध लेखक ‘इज्जुदीन खालिदखानी’ ने इनका फारसी में अनुवाद किया तथा सुल्तान के नाम पर इसका शीर्षक ‘दलायते फिरोजशाही’ रखा गया। 1375 ई. में राजा रूपचंद की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सागरचंद राजा बना। उसके शासनकाल में फिरोजशाह के बड़े बेटे नसीरूद्दीन ने 1389 ई. में काँगड़ा में शरण ली।

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