Historical Sources of Himachal Pradesh | हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक स्रोत 

Estimated read time 1 min read

Historical Sources of Himachal Pradesh

→ऐतिहासिक स्रोत

 हिमाचल प्रदेश का इतिहास अत्यधिक प्राचीन है। यहाँ से मानव की प्रारम्भिक गतिविधियों का पता मिलता है। अपनी प्रारम्भिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य जिन उपकरणों को उपयोग में लाता है उन्हीं के आधार पर उस युग के प्रथम इतिहास की रूपरेखा बाँधी जाती है। अतः भारत के इस पहाड़ी प्रदेश का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना मानव अस्तित्व का अपना इतिहास। इस बात की सत्यता इस प्रदेश में प्राप्त प्राचीन उपकरणों, औजारों एवं अन्य प्रमाणों से सिद्ध होती है। हालाँकि इस राज्य के इतिहास लेखन में सबसे बड़ी कमी यहाँ पर इतिहास से सम्बन्धित सामग्री का अभाव है।

 

राज्य में किसी भी काल का क्रमबद्ध और पूर्ण विवरण उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में उपलब्ध आधार संस्कृत साहित्य, यात्रा विवरण, प्राचीन काल के सिक्के, अभिलेख तथा वंशावलियाँ प्रमुख हैं। इन सब तथ्यों को सामने रखकर एक वैज्ञानिक ढंग से इतिहास की रचना करने का प्रयास किया गया है। उक्त तथ्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-

→ साहित्य

हिमाचल प्रदेश के इतिहास अध्ययन के लिए संस्कृत साहित्य का अहम् योगदान रहा है। इस साहित्य के अंतर्गत वैदिक ग्रंथों, पुराणों में यहाँ के लोगों के सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन का वर्णन किया गया है। इसके अलावा इन प्राचीन ग्रंथों में यहाँ के भूगोल पर भी प्रकाश डाला गया है। यद्यपि प्रमुख घटनाओं का क्रम भ्रान्तिपूर्ण व कल्पनायुक्त लगता है।

 

‘रामायण’, ‘महाभारत’, ‘वृहत्संहिता’ पाणिनी की ‘अष्टाध्यायी’, कालिदास का ‘रघुवंशम्’, विशाखदत्त की ‘मुद्राराक्षस’, ‘देवीचन्द्रगुप्त’ आदि में हिमालय में निवास करने वाली जनजातियों का विवरण मिलता है। इसके अलावा कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ विशेष उपयोगी है। इसका रचना काल 1150 ई. के आस-पास है।

 

कल्हण कश्मीर के नरेश राजा जयसिंह के दरबार में रहता था। पूज्यभट्ट व उसके शिष्य शुष्क के इतिहास ग्रन्थ में भी कश्मीर के साथ लगते हिमाचल के क्षेत्र का वर्णन प्राप्त होता है। इसके अलावा ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’ और ‘तारीख-ए- फरिश्ता’ में नागरकोट किले पर फिरोजशाह तुगलक के हमले का प्रमाण मिलता है। ‘तुजुक -ए-जहाँगीरी’ में जहाँगीर के काँगड़ा आक्रमण तथा ‘तुजुक – ए- तैमूरी’ से तैमूर लंग के शिवालिक पर आक्रमण की जानकाकी प्राप्त होती है।

→ यात्रा-वृत्तांत

हिमाचल प्रदेश के इतिहास के अध्ययन में इतिहासकारों तथा विद्वानों द्वारा की गई यात्राओं का क्रमबद्ध विवरण भी सहायक सिद्ध हुआ है। हिमाचल का सबसे पुरातन विवरण टॉलेमी का है। भारत की भौगोलिक अवस्था पर टॉलेमी द्वारा लिखा ग्रन्थ ईसा की दूसरी शताब्दी का है।

 

इस ग्रन्थ में कुलिंदों का भी वर्णन मिलता है। चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्षवर्धन के समय 630 ई. में भारत भ्रमण पर आया। उसने पन्द्रह वर्षों तक भारत में रहकर लेखन व अध्ययन कार्य किया। उसने अपने विवरणों में हिमाचल के त्रिगर्त कुल्लू आदि जनपदों का वर्णन किया है।

Historical Sources of Himachal Pradesh
Historical Sources of Himachal Pradesh

महमूद गजनवी के दरबार के प्रसिद्ध विद्वान अलबरूनी ने भी इन पहाड़ी राज्यों का विस्तृत वर्णन किया है। मुगल काल के राजाओं, मुगल सम्राटों और अनेक विद्वानों ने भी काफी कुछ इस प्रदेश पर लिखा है, जो यहाँ के इतिहास अध्ययन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

 

अंग्रेजी विद्वान विलियम फिंच, थॉमस कोरयाट, वार्नियर, जॉर्ज फारिस्टर, जेम्स वैली फ्रेंजर, अलेक्जेण्डर जेरार्ड, विलियम मूरक्राफ्ट (1820-1822), जीटी विनेवेरन, मेजर आर्चर (1829) ने समय-समय पर इस पर्वतीय क्षेत्र की यात्रा की तथा इस क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक दशा के बारे में अपने यात्रा विवरणों में चर्चा की है।

→ सिक्के (मुद्रा)

हिमाचल प्रदेश में सिक्कों की खोज का काम हिमाचल प्रदेश राज्य संग्रहालय की स्थापना के बाद गति पकड़ने लगा। भूरी सिंह म्यूजियम और राज्य संग्रहालय शिमला में त्रिगर्त, औदुम्बर, कुलूटा और कुनिंद राजवंशों के सिक्के रखे गये हैं। शिमला राज्य संग्रहालय में रखे 12 सिक्के अर्को से प्राप्त हुए हैं। अपोलोडोट्स के 21 सिक्के हमीरपुर के टप्पामेवा गाँव से प्राप्त हुए हैं। चम्बा के लचोड़ी और सरोल से इण्डो-ग्रीक के कुछ सिक्के प्राप्त हुए हैं।

 

हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी राजाओं ने भी अपनी मुद्राओं का प्रचलन किया था। इनमें काँगड़ा, चम्बा और कुल्लू प्रमुख थे। कुल्लू से प्राप्त वीरयश (विर्यास) नामक राजा द्वारा चलाया गया सिक्का कुल्लू का सबसे प्राचीन सिक्का है। यह ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी का है।

 

हालांकि, शिमला और काँगड़ा से प्राप्त कुछ सिक्के इससे भी पुराने हैं। इन्हें ‘आहत सिक्के’ कहा जाता है। अन्य प्रमुख सिक्कों में ताँबा, चाँदी और काँसा आदि के प्रमुख सिक्के हैं, जिनसे त्रिगर्त, औदुम्बर, कुलिंद, यौधेय आदि गणराजाओं की जानकारी मिलती है। यूनान और कुषाणों की मुद्राएँ भी काँगड़ा और शिमला क्षेत्र से प्राप्त हुई हैं। इस क्षेत्र में परवर्तीकालीन सिक्के बहुत कम मिले हैं। इनको ‘वृषभ’ अश्वसार प्रकार के | सिक्के कहा जाता है।

→ शिलालेख / ताम्र-पत्र

हिमाचल प्रदेश के प्राचीन इतिहास के अध्ययन में शिलालेख काफी सहायक सिद्ध हुए हैं। इनमें मण्डी में सलोणु का शिलालेख, काँगड़ा के पथयार और कनिहारा के शिलालेख, हाटकोटी में सूनपुर की गुफा का शिलालेख, जौनसार बाबर क्षेत्र में अशोक के शिलालेख प्रमुख हैं। इस सन्दर्भ में अभिलेख भी महत्त्वपूर्ण हैं।

 

सिक्कों पर मिले अभिलेख त्रिगर्त, कुलिंद तथा औदुम्बरों के गणराज्य या उनके राजाओं का उल्लेख करते हैं। ये अभिलेख फरमान या सनद हैं, जो एक शासक द्वारा दूसरे शासक को, अफसर को, विद्वान् को तथा सर्वसाधारण जनता को लिखवाए जाते थे। इन शिलालेखों/अभिलेखों द्वारा हिमाचल प्रदेश के प्राचीन समय की सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों की जानकारी प्राप्त होती है।

Historical Sources of Himachal Pradesh
Historical Sources of Himachal Pradesh

बैजनाथ के एक मन्दिर से प्राप्त गुप्तोत्तरकालीन अभिलेख, कुल्लू में सालरू में गुप्तकालीन अभिलेख, निरमण्ड से प्राप्त ताम्र पत्र आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा चम्बा और कुल्लू से लगभग दो सौ ताम्र-पत्र प्राप्त हुए हैं, जो प्राचीन इतिहास की कड़ी जोड़ने में सहायक हैं। चम्बा के भूरी सिंह म्यूजियम में चम्बा से प्राप्त 36 अभिलेखों को रखा गया है जो कि शारदा और टांकरी लिपियों में लिखे हुए हैं।

वंशावलियाँ

हिमाचल प्रदेश के इतिहास को जानने में वंशावलियों ने अपनी अहम छाप छोड़ी है। राजाओं द्वारा ये वंशावलियाँ विद्वानों से बनवाई जाती थीं। ये वंशावलियाँ पहाड़ी राजपरिवारों में बहुत संख्या में प्राप्त हुई हैं। इन वंशावलियों की तरफ सर्वप्रथम विलियम मूरक्राफ्ट ने काम किया और काँगड़ा के राजाओं की वंशावलियाँ खोजने में सहायता की। बाद में कनिंघम ने काँगड़ा, नूरपुर, चम्बा, मण्डी, सुकेत आदि राजघरानों की वंशावलियाँ खोजी।

 

कैप्टन हारकोर्ट ने कुल्लू की वंशावली प्राप्त की थी। इनमें से प्राप्त कुछ वंशावलियाँ कोरी कल्पना लगती हैं, तो कुछ बिल्कुल सही मालूम होती हैं। 1300 ई. के उपरान्त की वंशावली को हरमन गोटयज ने सही माना है। मूलत: 1500 ई. के पश्चात् की वंशावलियाँ ही सही लगती हैं।

इसे भी पढ़ें

Founder of the Princely States of Himachal Pradesh, and Year of Establishment

हिमाचल प्रदेश में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी प्रमुख गतिविधियाँ

Samuel Evans Stokes and Baba Kanshiram : सैमुअल इवांस स्टोक्स और बाबा कांशीराम

facebook

youtube

 

You May Also Like

More From Author

+ There are no comments

Add yours