हिमालयन हिल स्टेट्स सब रीजनल कौन्सिल
■ हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल कौन्सिल की 10 जून, 1947 को एक बैठक शिमला के रॉयल होटल में हुई। इस बैठक में कौन्सिल के 16 सदस्यों में से 11 सदस्यों ने भाग लिया। इस दौरान सदस्यों में वैचारिक मतभेद उत्पन्न होने के कारण 6 सदस्यों ने एक अलग संगठन बना लिया। उन्होंने इस संगठन को ‘हिमालयन हिल स्टेट्स सब रीजनल कौन्सिल’ नाम दिया।
डॉ. यशवंत परमार को इस नई कौन्सिल का प्रधान चुना गया। मण्डी के तेज सिंह निधड़क, भज्जी के लीला दास वर्मा और बिलासपुर के सदाराम चंदेल को संगठन का उप-प्रधान बनाया गया। पंडित पद्मदेव को महामंत्री, दौलत राम गुप्ता को प्रचार मंत्री, सूरत राम प्रकाश को कोषाध्यक्ष और सेनू राम को कार्यालय मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई।
■ शिमला की पहाड़ी रियासत सांगरी में 31 जुलाई, 1947 को हिमालयन हिल स्टेट्स सब रीजनल कौन्सिल का पहला सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन का आयोजन वहाँ के प्रजा मण्डल के कार्यकर्ता चिरंजी लाल वर्मा ने किया। यह सम्मेलन सफल रहा और इसकी सफलता को देखकर सांगरी का राजा सांगरी को छोड़कर परिवार सहित कुल्लू में स्थित आनी चला गया।
■ हिमालयन हिल स्टेट्स सब रीजनल कौन्सिल के प्रधान डॉ. यशवंत सिंह परमार और पंडित पद्मदेव ने नवंबर 1947 में सुकेत रियासत के दौरे आरंभ किए। सुकेत रियासत की सरकार द्वारा आंदोलनकारियों का दमन शुरू करने पर डॉ. यशवंत सिंह परमार प्रजा मण्डल के प्रधान रत्न सिंह और उनके कुछ साथियों के साथ शिमला होते हुए दिल्ली पहुँचे तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल से मुलाकात की। केंद्रीय नेताओं ने उन्हें सहायता का आश्वासन दिया।
■ डॉ. यशवंत सिंह परमार पहाड़ी रियासतों के भारत संघ में विलय का प्रचार कर रहे थे। वहीं, मूल संस्था हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल कौन्सिल के सदस्य भी अपना काम नियमित रूप से करते रहे। इस कौन्सिल के सदस्यों ने 21 दिसंबर, 1947 को शांगरी रियासत की राजधानी बड़ागाँव में एक सम्मेलन किया। इसकी अध्यक्षता प्रजा मण्डल के प्रधान सत्यदेव बुशहरी ने की। इस सम्मेलन में सभी पहाड़ी रियासतों को मिलाकर एक पहाड़ी प्रांत बनाने की मांग वाला प्रस्ताव पारित किया गया।

प्रतिनिधि सरकारें | Representative Governments
■ 15 अगस्त, 1947 को आजादी के बाद भारत सरकार के राज्य मंत्रालय की प्रजा मण्डल कार्यकर्ताओं के साथ सहानुभूति को देखते हुए राजाओं ने भी अपनी रियासतों में उत्तरदायी सरकारों को स्थापित करना आरंभ कर दिया। ठियोग पहली रियासत थी जो हिमाचल प्रदेश के बनने से पहले ही भारतीय संघ में शामिल हो गई जबकि बिलासपुर रियासत का विलय सबसे आखिर में हुआ।
■ 25 जनवरी, 1948 को हिमालयन हिल स्टेट्स सब रीजनल कौन्सिल की शिमला के गंज मैदान में डॉ. यशवंत सिंह परमार की अध्यक्षता में विशाल जनसभा हुई। इसमें पहाड़ी रियासतों को भारत संघ में विलय पर जोर दिया गया तथा इसका नाम ‘हिमालयी प्रांत रखने का प्रस्ताव रखा गया। पहाड़ी शासकों ने इसका नाम ‘रियासती संघ सुझाया था।
■ 26 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की सलाह पर बघाट के अंतिम राजा दुर्गा सिंह की अध्यक्षता में सोलन में एक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में सभी पहाड़ी रियासतों के राजाओं ने हिमालयी प्रांत का नामकरण ‘हिमाचल प्रदेश किया। अतः राजा दुर्गा सिंह ने 25 पहाड़ी रियासतों को मिलाकर एक नया प्रांत ‘हिमाचल प्रदेश’ बनाने की घोषणा की।
■ 8 मार्च, 1948 को चम्बा रियासत के अंतिम राजा लक्ष्मण सिंह ने हिमाचल के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए। इसी दिन मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट के सचिव सी. सी. देसाई ने केंद्र सरकार की ओर से पहाड़ी रियासतों के विलय से एक अलग प्रांत ‘हिमाचल प्रदेश’ बनाने की घोषणा की। इस प्रकार शिमला पहाड़ी रियासत की 26 रियासतों के विलय से हिमाचल प्रदेश के गठन की प्रक्रिया आरंभ हुई। 15 अप्रैल, 1948 को हिमाचल प्रदेश को केंद्रशासित ‘चीफ कमीशनर्ज प्रोविंस का दर्जा मिला।
■ 1952 में मेजर जनरल हिम्मत सिंह को हिमाचल प्रदेश का उपराज्यपाल नियुक्त किया गया। इसके अलावा राज्य में पहली बार 36 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव हुए। 24 मार्च को डॉ. यशवंत सिंह परमार हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने।
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