हिमाचल का इतिहास: महाराजा रणजीत सिंह
1809 ई. में महाराजा रणजीत सिंह (Maharaja Ranjit Singh) ने गोरखों पर आक्रमण कर अमर सिंह थापा को हराया और सतलुज के पूर्व तक धकेल दिया। संसारचंद ने महाराजा रणजीत सिंह को 66 गाँव काँगड़ा किले की सहायता के बदले में दिए। 1809 ई. में महाराजा रणजीत सिंह ने देसा सिंह मजीठिया को काँगड़ा किला और काँगड़ा का नाजिम बनाया। रणजीत सिंह ने 1813 ई. में हरिपुर (गुलेर) का राज्य अधीन कर लिया। नूरपुर और जसवाँ के राजाओं को राज्य से हाथ धोना पड़ा।
1818 ई. में दातारपुर के राजा की मृत्यु के बाद उसके पुत्र ने राज्य रणजीत सिंह को समर्पित कर दिया और उसके बदले में उसे होशियारपुर में जागीर दी गई। सिबा राज्य ने भी अपना किला सिखों को सौंप दिया और करदाता राज्य बन गया। 1825 ई. में सिखों ने कुटलैहर के महल और किले को घेर लिया। राजा ने हार मान ली और रणजीत सिंह ने उसे 10,000 रुपये की जागीर प्रदान की। रणजीत सिंह ने सिरमौर में नरैनगढ़ के घेरे की भी आज्ञा दी थी।

राजा संसारचन्द की 1823 ई. में मृत्यु हो गई और उसके बेटे अनिरुद्ध चन्द को एक लाख रुपये रणजीत सिंह को नजराना देकर गद्दी पर बैठने का अधिकार प्राप्त हुआ। 1827 ई. में कटोच राजा लाहौर गया, जहाँ पर रणजीत सिंह ने जम्मू के राजा ध्यान सिंह के पुत्र के लिए उसकी बेटी का हाथ माँगा। अनिरुद्ध ने सहमति का नाटक किया परन्तु वापस लौट कर अपनी बेटी का विवाह वहाँ करने से इनकार कर दिया। उसने अपने परिवार और नौकर-चाकरों के साथ सतलुज को पार करके पहले अर्को में और फिर हरिद्वार में ब्रिटिश राज्य से शरण माँगी।
काँगड़ा समूह के राज्यों में अपनी आजादी खोने वाला कुल्लू अन्तिम राज्य था। 1812 ई. में कर उगाहने के लिए कुल्लू में सिख सेना भेजी गई, राजा डर कर भाग गया, अन्ततः राजा को सिखों की माँग पूरी करनी पड़ी। 1839 ई. में वैंचुरा के नेतृत्व में एक सेना मण्डी भेजी गई थी, तो एक टुकड़ी कुल्लू भी भेजी गई। कुल्लू के राजा ने आत्मसमर्पण कर दिया लेकिन उससे अत्यधिक अपमानजनक और क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया।

कुल्लू के लोगों ने राजा को बचाने के लिए घात लगाकर हमला किया और राजा को बचा लिया गया। महाराजा रणजीत सिंह की 1839 ई. में मृत्यु के पश्चात् सिखों का पतन शुरू हो गया। 1840 ई. के बसन्त में सिख सेनाओं ने फिर से कुल्लू को घेर लिया। राजा भाग गया और 1841 ई. में उसकी मृत्यु हो गई । सिखों ने बुशहर में प्रवेश की भी कोशिश की परन्तु बुशहरियों ने उन्हें वापस लौटने को विवश कर दिया।
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