Himachal History : वर्द्धन काल एवं ह्वेनसांग Vardhan Kaal and Xuanzang

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Vardhan Kaal and Xuanzang

हर्ष पुष्यभूति वंश का सबसे प्रतापी राजा था। 606 ई. में हर्ष के सिंहासन पर बैठने के साथ ही भारतीय राजनीति का केन्द्र पाटलिपुत्र से हटकर थानेश्वर और बाद में कन्नौज हो गया। हर्ष उत्तरी भारत में दृढ़ साम्राज्य बनाने में सफल हुआ। वह बौद्ध और हिन्दू धर्मों का संरक्षक था। हर्ष के समय में बौद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था। वह उत्तर के रास्ते ताशकन्द और समरकन्द होता हुआ गन्धार राज्य में 630 ई. में पहुँचा था।

 

ह्वेनसांग भारत में लगभग 13 वर्ष रहा और इस दौरान उसने हर प्रान्त का भ्रमण किया। उसने भारत की तत्कालीन परिस्थितियों को विस्तृत में लिखा है। वह उन क्षेत्रों में घूमा जिन्हें आज हिमाचल प्रदेश कहा जाता है। 635 ई. में उसने त्रिगर्त राज्य की राजधानी जालन्धर का भ्रमण किया। वह चार महीने तक राजा उतीतस (अदिमा) का अतिथि रहा और वहाँ से कन्नौज गया और अपनी चीन वापसी की यात्रा में 643 ई. में फिर उतीतस (अदिमा) के साथ जालन्धर में रहा।

वर्द्धन काल एवं ह्वेनसांग Vardhan Kaal and Xuanzang
वर्द्धन काल एवं ह्वेनसांग Vardhan Kaal and Xuanzang

ह्वेनसांग ने जालंधर के बाद कुल्लू, लाहौल और सिरमौर की यात्रा भी की। ह्वेनसांग के वृत्तान्तों में हर्ष के शासनकाल में हिमाचल प्रदेश का वर्णन मिलता है। यहाँ कॉफी, चावल और दाल पैदा होते हैं। यहाँ के वन घने और छायादार हैं, फल और फूल प्रचुर मात्रा में पैदा होते हैं। लोग बहादुर और उतावले हैं तथा देखने में असाधारण और गँवारू लगते हैं। यहाँ लगभग बीस धर्मस्थल (मठ) और लगभग 2,000 पुजारी हैं। इनमें हीनयान और महायान दोनों के विद्यार्थी हैं। तीन देव मन्दिर एवं पाँच सौ विद्यार्थी भी हैं, जो पाशुपत धर्म को मानते हैं।

 

647 ई. में हर्ष की मृत्यु के पश्चात् उथल-पुथल के युग में कश्मीर के शासक ललितादित्य (724-760 ई.) के समकालीन यशोवर्मन (700-740 ई.) के समय तक हिमाचल प्रदेश के इतिहास के विषय में बहुत कम जानकारी प्राप्त है। कल्हण की पुस्तक ‘राजतरंगिणी’ में कश्मीर के राजा ललितादित्य और यशोवर्मन के बीच युद्ध का विवरण मिलता है।

 

इस युद्ध में यशोवर्मन पराजित हुआ था। कल्हण ने लिखा है कि ललितादित्य अपनी सेनाएँ लेकर दूर देशों में गया था। इस समय में त्रिगर्त, ब्रह्मपुर (चम्बा) और अन्य पश्चिमी पहाड़ी क्षेत्र उसके प्रभाव में आ गए। जब कश्मीर के शासक शंकरवर्मन ( 833-903 ई.) ने गुजरात के राजा पर आक्रमण के लिए अभियान किया तो त्रिगर्त के राजा ने इसका विरोध किया। हो सकता है कि वह गुजरात के राजा का सहायक रहा हो, इस राजा का नाम पृथ्वीचन्द था। कश्मीर की सेना से वह परास्त हो गया, त्रिगर्त तब कश्मीर के अधीन हो गया।

 

प्रतिहार सत्ता के 10वीं शताब्दी में कमजोर पड़ने पर उसके सामन्तों ने स्वतन्त्र रियासतों को जन्म दिया। परिणास्वरूप राजस्थान और गंगा दोआब की राजपूत रियासतों का जन्म हुआ। राजपूत राजा उत्तर-पश्चिम से आने वाले आक्रान्ताओं के खतरे का सामना करने के लिए एकजुट होने की जगह आपस में सर्वोच्च सत्ता के लिए लड़ते रहे।

 

जो सामन्त मैदानों में अपने प्रतिद्वन्द्वियों को पराजित कर अपने अधीन नहीं कर सके, वे अपने साथियों सहित उत्तर में पश्चिमी हिमाचल प्रदेश की घाटियों में प्रवेश कर गए। इससे शक्तिशाली पहाड़ी राजशाहियों का जन्म हुआ। इनमें से अधिकांश राज्य मुसलमानों के आक्रमण से पूर्व स्थापित हो चुके थे। आठवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच अनेक साहसिक प्रवासी राजपूतों ने रावी और यमुना के बीच हिमालय की सीमान्त श्रृंखलाओं में राज्य स्थापित किए। इनमें से कुछ रियासतें तो 15वीं या 16वीं शताब्दी में स्थापित की गईं।

Historical Sources of Himachal Pradesh | हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक स्रोत 

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