हिमाचल में अनुबंध कर्मचारियों के दूसरे जिले में ट्रांसफर पर अब उन्हें रेगुलराइजेशन तो मिल जाएगी, लेकिन सीनियोरिटी नहीं मिलेगी। यह राय इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर के मामले में कार्मिक विभाग ने सरकार को दी है।
इस फाइल पर प्रारंभिक शिक्षा विभाग के सात जिलों के उन उपनिदेशकों के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश भी की गई है, जिन्होंने शिक्षा विभाग की इंटर डिस्ट्रिक्ट पॉलिसी के अनुसार कॉन्ट्रैक्ट के टीचर्स को रेगुलर कर दिया था।
कार्मिक विभाग का मानना है कि कैबिनेट से पारित इन प्रावधानों का उल्लंघन उपनिदेशकों ने किया है। इसके साथ ही भविष्य के लिए इन आदेशों में भी संशोधन किया जा रहा है। इसके अनुसार कांट्रैक्ट के उन कर्मचारियों को 2016 की चिट्ठी के विपरीत दो साल की कांट्रैक्ट अवधि के बाद रेगुलर तो कर दिया जाएगा, लेकिन दूसरे जिले में इन्हें वरिष्ठता नहीं मिलेगी।जब तक उस जिला में पहले से मौजूद टीचर रेगुलर नहीं हो जाते, तब तक इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर होकर आए टीचर को सीनियोरिटी नहीं मिलेगी।

यह प्रावधान अब शिक्षा समेत सभी विभागों के लिए लागू हो जाएगा। इसके साथ ही कार्मिक विभाग ने शिक्षा विभाग को अपनी इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर पॉलिसी में भी संशोधन की सिफारिश की है। इन्हें कहा गया है कि इसमें अनुबंध कर्मचारियों के लिए प्रावधान स्पष्ट किया जाए।
कार्मिक विभाग से फाइल अब मुख्य सचिव से होते हुए मुख्यमंत्री तक जाएगी और यदि सरकार ने भी इसी सुझाव को मंजूर कर दिया, तो प्रारंभिक शिक्षा विभाग के सात जिलों के डिप्टी डायरेक्टर के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई हो सकती है। हालांकि खुद शिक्षा विभाग इसके पक्ष में नहीं है।
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गौरतलब है कि राज्य सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में ही जेबीटी और सीएंडवी कैडर के टीचर्स को राहत देने के लिए इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर पॉलिसी में संशोधन करते हुए 13 साल की अवधि को कम कर पांच साल कर दिया था। साथ ही मुचुअल ट्रांसफर, दिव्यांग शिक्षकों और शादी के कारण जिला बदलने वाली महिला शिक्षकों के लिए पांच साल की अवधि को भी खत्म कर दिया था।
इसके बाद बहुत से कांट्रैक्ट टीचर्स ने भी मुचुअल ट्रांसफर करा ली और इस कारण एक जिले में ट्रांसफर हुआ टीचर रेगुलर हो गया, जबकि दूसरे जिले में नहीं हुआ।

पांच जिलों ने कॉन्ट्रैक्ट टीचर्स को कार्मिक विभाग की 2016 की एक चिट्ठी का हवाला देते हुए रेगुलर नहीं किया, जबकि सात जिलों ने इस पत्र को इग्नोर करते हुए इन्हें रेगुलर कर दिया। इसके बाद फिर यह विवाद कार्मिक विभाग में गया था, जो अब तक सुलझा नहीं था।
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