Hill States of Himachal, Revolt of 1857

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1857 ई. की क्रांति Revolt of 1857 

अंग्रेजों द्वारा पहाड़ी राजाओं को उनकी पुरानी जागीरें नहीं देने के कारण लाहौर संधि से उनका अंग्रेजों से मोह भंग होने लगा। काँगड़ा पहाड़ी की रियासत ने 1848 ई. में दूसरे ब्रिटिश-सिख युद्ध में अंग्रेजों के विरुद्ध सिखों का साथ दिया। इस वर्ष अंग्रेजों के विरुद्ध काँगड़ा, जसवाँ, दतारपुर एवं नूरपुर रियासतों ने विद्रोह किया जिसे कमिश्नर लॉरेंस द्वारा दबा दिया गया। हालांकि, नूरपुर के वजीर राम सिंह पठानिया ने अंग्रेजों का नाकों चने चबवा दिये। एक ब्राह्मण पहाड़चंद द्वारा विश्वासघात किये जाने के कारण अंग्रेजों ने शाहपुर के पास ‘डाले की धार’ में वजीर राम सिंह पठानिया को हरा दिया।

 

Hill States of Himachal, Revolt of 1857
Hill States of Himachal, Revolt of 1857

अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बना लिया और सिंगापुर भेज दिया, वहीं पर उनकी मृत्यु हुई। हिमाचल प्रदेश में अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध विद्रोह की पहली चिंगारी कसौली छावनी में 20 अप्रैल, 1857 को भड़की। इस दिन अंबाला राइफल डिपो के छह देशी सैनिकों ने कसौली में एक पुलिस चौकी को आग लगा दी। 11 मई, 1857 को मेरठ, अंबाला, और दिल्ली के विद्रोह के कत्लेआम की खबर शिमला पहुँची। शिमला पहाड़ी के ब्रिटिश सेना कमाण्डर इन चीफ जनरल जॉर्ज एनसन ने जतोग, सपाटू, डगशाई और कसौली छावनियों के सैनिकों को अंबाला कूच करने का आदेश दिया। उसने स्वयं भी अंबाला की ओर कूच किया। लेकिन देशी सेना ने उसका आदेश मानने से इंकार कर दिया।

 

सूबेदार भीम सिंह देशी सेना के नेता थे। जतोग में तैनात नसीरी बटालियन (गोरखा रेजिमेंट) ने सूबेदार भीम सिंह के नेतृत्व में जतोग छावनी पर कब्जा कर सरकारी खजाने को लूट लिया। कसौली की नसीरी बटालियन के देशी सैनिकों ने 16 मई, 1857 को विद्रोह कर कसौली के अंग्रेज सैनिकों पर हमला बोल दिया। कैप्टन ब्लैकॉल के साथ अंग्रेज सैनिक छावनी से भाग निकले। वहीं, देशी सैनिकों ने खजाने को लूट कर जतोग की ओर बढ़ना शुरू किया।

 

कसौली से नसीरी बटालियन के जाने के बाद स्थानीय पुलिस गार्ड ने विद्रोह की बागडोर अपने हाथ में ले ली। इसके नेता छावनी थाने के दरोगा बुद्धि सिंह बने। 18 मई, 1857 को कैप्टन मोफट, डगशाई से कैप्टन ब्रुक तथा सपाटू से कर्नल कांगरीब अपने-अपने सैन्य दस्तों के साथ कसौली की सुरक्षा के लिए पहुँचे। शिमला में रामप्रसाद बैरागी के नेतृत्व में गुप्त संगठन अंग्रेजों के विरुद्ध कार्यरत था। अंबाला के कमिश्नर जी. सी. बार्नस ने इस संगठन के कुछ पत्र 12 जून, 1857 को पकड़े। इन पत्रों को रामप्रसाद बैरागी ने नसीरी बटालियन के सूबेदार को सहारनपुर तथा महाराजा पटियाला के वकील को अंग्रेजों का विरोध करने के लिए भेजे थे। रामप्रसाद बैरागी को गिरफ्तार कर अंबाला जेल ले जाकर फाँसी दे दी गई।

 

जून माह में ही कुल्लू में स्थानीय युवराज प्रताप सिंह के नेतृत्व में विद्रोह हुआ। इस विद्रोह में सिराज क्षेत्र के नेगी ने सहायता की। प्रताप सिंह और उसके साथी वीर सिंह को गिरफ्तार कर धर्मशाला में 3 अगस्त, 1857 को फाँसी दे दी गई। चम्बा के निवासियों ने 1857 ई. के विद्रोह में सक्रिय रूप से भाग नहीं लिया। चम्बा के राजा श्री सिंह अंग्रेजी हुकूमत के वफादार बने रहे । जालंधर में 36 नेटिव इन्फैंट्री और 61 नेटिव इन्फैंट्री के विद्रोह से डलहौजी में बसे अंग्रेज भयभीत हो गए। इस कारण कुछ महिलाओं और बच्चों ने चम्बा के राजा के यहाँ शरण ली। डलहौजी की सुरक्षा के लिए मियां अतर सिंह के नेतृत्व में एक सैन्य टुकड़ी भेजी गई।

 

14 अगस्त, 1857 तक शिमला, काँगड़ा, कुल्लू, नालागढ़ और अन्य पहाड़ी रियासतों में क्रांति के शोले मंद हो गए थे। 1857 की इस क्रांति को अंग्रेजी हुकूमत ने पहाड़ी शासकों की मदद से दबा दिया। इस कार्य में शिमला के डिप्टी कमिशनर विलियम हे ने अहम् भूमिका निभायी। इस क्रांति में हिमाचल के 50 क्रांतिकारियों को फाँसी दी गई, 500 को जेलों में बंद किया गया तथा 30 को देश निकाला दिया गया था तथा उनकी सम्पत्तियों को जब्त कर लिया गया था।

 

1857 ई. की क्रांति के बाद हिमाचल के साथ-साथ पूरे देश में ‘भारत सरकार अधिनियम 1858’ लागू किया गया। 1 नवंबर, 1858 को महारानी विक्टोरिया द्वारा जारी घोषणा पत्र की घोषणा लॉर्ड कैनिंग ने इलाहाबाद में की। शिमला में भी इसका प्रकाशन हुआ और शहर के मुख्य स्थानों पर इसे चिपकाया गया।

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