गोरखा-ब्रिटिश युद्ध (Gurkha-British War)
अमर सिंह थापा ने 1813 ई. में सरहिंद के छह गाँवों पर कब्जा करना चाहा। इनमें से दो गाँव ब्रिटिश-सिखों के अधीन थे। इससे दोनों में विवाद बढ़ गया। इसके अलावा गोरखे ब्रिटिशों के व्यापारिक हितों के आगे आने लगे थे क्योंकि तिब्बत से उनका महत्त्वपूर्ण व्यापार होता था।

गोरखों ने तिब्बत जाने वाले लगभग सभी दरों एवं मार्गों पर कब्जा कर लिया था। इसलिए गोरखा ब्रिटिश युद्ध अनिवार्य लगने लगा था। अंग्रेजों ने 1 नवम्बर, 1814 को गोरखों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
मेजर जनरल डेविड आक्टरलोनी और मेजर जनरल रोलो गिलेस्पी के नेतृत्व में अंग्रेजों ने गोरखों के विरुद्ध युद्ध लड़ा। मेजर गिलेस्पी ने 4400 सैनिकों के साथ गोरखा सेना को कलिंग के किले में हराया जिसका नेतृत्व अलभद्र थापा कर रहे थे। अमर सिंह थापा के पुत्र रंजौर सिंह ने नाहन से जातक किले में जाकर अंग्रेजी सेना को भारी क्षति पहुँचाई।
कहलूर रियासत शुरू में गोरखों के साथ थी जिससे गोरखों ने ब्रिटिश सेनाओं को कई स्थानों पर भारी क्षति पहुँचाई। अंग्रेजों ने बिलासपुर के सरदार के साथ मिलकर कन्दरी से नाहन तक सड़क बनवाई। अंग्रेजों ने 16 जनवरी, 1815 को डेविड आक्टरलोनी के नेतृत्व में अर्को पर आक्रमण किया। अमर सिंह थापा के मलौण किले में चले जाने के साथ ही अंग्रेजों ने तारागढ़ और रामगढ़ के किले पर कब्जा कर लिया।
गोरखों की हार
अंग्रेजों ने जुब्बल रिसायत में डांगी वजीर और प्रिमू के साथ मिलकर 12 मार्च, 1815 को चौपाल में 100 गोरखों को हथियार डालने पर विवश किया। चौपाल जीतने के बाद ‘ राबिनगढ़ किले’ जिस पर रंजौर सिंह थापा का कब्जा था, अंग्रेजों ने आक्रमण किया। बुशहर रियासत की सेनाओं ने टीमक दास, बदरी और डांगी वजीर सहित अंग्रेजों के साथ मिलकर गोरखों को ‘राबिनगढ़ किले से भगा दिया।
रामपुर-कोटगढ़ में बुशहर और कुल्लू की संयुक्त सेनाओं ने ‘सारन-का- टिब्बा’ के पास गोरखों को हथियार डालने पर मजबूर कर दिया। हण्डूर के राजा रामशरण और कहलूर के राजा के साथ मिलकर अंग्रेजों ने मोर्चा बनाया। अमरसिंह थापा को रामगढ़ से भागकर मलौण किले में शरण लेनी पड़ी।
भक्ति थापा की मृत्यु (गोरखों का बहादुर सरदार) मलौण किले में होने से गोरखों को भारी क्षति हुई। कुमाऊँ की हार और अपने सैनिकों की युद्ध करने की अनिच्छा के कारण अमरसिंह थापा ने आत्मसमर्पण कर दिया।
सुगौली की संधि/Treaty of Sugauli
सुगौली की संधि सुगौली की संधि गोरखों और अंग्रेजों के बीच 28 नवंबर, 1815 ई. को हुई। अमरसिंह थापा ने जातक दुर्ग की रक्षा कर रहे। अपने पुत्र रंजौर सिंह की सम्मानजनक और सुरक्षित वापसी के लिए ब्रिटिश मेजर जनरल डेविड आक्टरलोनी के साथ ‘सुगौली की संधि’ पर हस्ताक्षर किये।

इस संधि के अनुसार, गोरखों को अपनी निजी सम्पत्ति के साथ वापस सुरक्षित नेपाल जाने का रास्ता दिया गया।
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