हिमाचल का प्राचीन इतिहास | Ancient Himachal
हिमाचल प्रदेश का प्रागैतिहासिक विवरण तैयार करने में विभिन्न कालक्रम के प्राप्त साक्ष्यों की मदद ली गई है। इस पर्वतीय राज्य में भी सभ्यताओं के विकास के बाद राजकीय सत्ताओं की स्थापना का दौर चला, जहाँ वृहत् साम्राज्यों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। हिमाचल प्रदेश के प्राचीन इतिहास का संक्षिप्त रूप में क्रमबद्ध विवरण निम्नवत् है-
प्रागैतिहासिक काल
हिमाचल प्रदेश का प्रागैतिहासिक काल भारत के मैदानों और मध्य एशिया से लोगों के परिव्रजन के इतिहास को दर्शाता है। यह माना जाता है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता (2400 ई.पू. से 1700 ई. पू.) एक विशाल भू-खण्ड में फैली थी। भारत के मैदानों से आकर बसने वाले लोगों से पूर्व कोल, जिन्हें ‘मुण्डा’ भी कहा जाता है, सम्भवत: हिमाचल के प्राचीनतम निवासी हैं। सम्भवतः पश्चिमी हिमाचल के कोली, काली, डूम, चनाल और किन्नौर, लाहौल-स्पीति के चमांग-डुमांग उसी प्राचीन प्रजाति के अवशेष हैं।

शिवालिक की तलहटी में स्थित व्यास घाटी में काँगड़ा, गुलेर, देहरा और ढलियारा में बिलासपुर, नालागढ़ की सिरसा- सतलुज घाटी में तथा सिरमौर की मारकण्डा घाटी के सुकेती क्षेत्र में बिखरी बजरी और पंखों के आकार के विशालकाय पत्थरों में गड़े हुए पत्थर के औजारों, छुरों, हाथ की कुल्हाड़ियों और धारदार पत्थरों से | इस क्षेत्र में प्राचीनतम काल में मानव अस्तित्व का प्रमाण मिलता है।
भारत के अन्य भू-खण्डों से प्राप्त ऐसे औजारों के वर्गीकरण के | आधार पर यह कहा जा सकता है कि मारकण्डा और सिरसा- सतलुज घाटी में पाए गए औजार कम-से-कम चालीस हजार वर्ष पुराने हैं।
वैदिक काल और खस | Ancient Himachal |
भारतीय आर्य मध्य एशिया से दक्षिण की ओर चलकर ईरान पहुँचे। इनमें से कुछ वहाँ बस गए और कुछ साहसिक झुण्ड पूर्व की ओर बढ़े और हिन्दुकुश पर्वत को पार कर सिन्धु तक आ गए, जिसे वे सप्त सिन्धु अर्थात् सात नदियों का प्रदेश कहते थे। सप्त सिन्धु प्रदेश में आर्यों के आगमन का समय 2000 ई. पू. माना जाता है।
जब ये सिन्धु घाटी में आए तो ऐसे लोगों के सम्पर्क में आए जो इनसे ज्यादा सभ्य और किलों से घिरे शहरों में रहते थे। इन्होंने उन्हें हरा दिया और वहाँ बस गए। यहाँ से ये पंजाब को पारकर हिमालय की तराई में सरस्वती, यमुना और गंगा की घाटियों में बस गए। इस भूमि के श्यामवर्ण आदिवासियों ने, जिन्हें ये दस्यु कहते थे, इनका कठोर प्रतिरोध किया।
इन दस्यु राजाओं में से एक शक्तिशाली राजा शाम्बर था, जो आर्यों का सबसे बड़ा शत्रु था। दस्यु राजा ‘शाम्बर’ के पास यमुना से व्यास के बीच की पहाड़ियों में 99 किले थे। ऋग्वेद के अनुसार, दस्यु राजा शाम्बर और आर्य राजा दिवोदास के बीच 40 वर्षों तक युद्ध हुआ।
अंत में दिवोदास ने उदब्रज नामक स्थान पर शाम्बर का वध कर दिया। मंगोलोयड जिन्हें ‘भोट और किराज’ के नाम से जाना जाता है, हिमाचल में बसने वाली दूसरी प्रजाति बन गई। ये लोग हिमाचल के ऊपरी क्षेत्रों में बस गये। ‘आर्य’ या ‘खस’ हिमाचल में प्रवेश करने वाली तीसरी प्रजाति थी।

‘खसों के सरदार को ‘मवाना’ कहा जाता था। ये लोग खुद को क्षत्रिय मानते थे। समय के साथ ये खस समूह ‘जनपदों में बदल गये। वैदिMM क काल में पहाड़ों पर आक्रमण करने वाला दूसरा आर्य राजा सहस्रार्जुन था, जिसने जमदग्नि ऋषि की गायें छीन ली थीं। जमदग्नि के पुत्र परशुराम ने सहस्रार्जुन का वध कर दिया। परशुराम के डर से क्षत्रिय खस ऊपरी भू-भागों में आकर बस गए और मवाणा राज्यों की स्थापना की।
ऋग्वेद में हिमालय, उसकी चोटियों और उनसे निकलने वाली नदियों का वर्णन किया गया है। उत्तर वैदिक काल में कुछ आर्य महात्मा हिमालय की तराई में शान्तिपूर्वक जीवन-यापन के लिए आए और उन्होंने अपने आश्रम स्थापित किए। सिरमौर में रेणुका झील जमदग्नि से सम्बन्धित है, वहीं मणिकरण में स्थित वशिष्ठ कुण्ड वशिष्ठ ऋषि से तथा बिलासपुर में व्यास गुफा ऋषि व्यास से सम्बन्धित हैं। ऋषि भारद्वाज आर्य राजा दिवोदास के मुख्य सलाहकार थे।
Ancient Himachal | प्राचीन हिमाचल
Historical Sources of Himachal Pradesh | हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक स्रोत
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