महाभारत काल और चार जनपद | Mahabharata period and four Janapadas
महाभारत में चार जनपदों त्रिगर्त, औदुम्बर, कुलिंद और कुल्लूत का विवरण मिलता है। महाभारत काल के समय त्रिगर्त के राजा सुशर्मन (सुशर्मचन्द्र) ने महाभारत युद्ध में कौरवों की सहायता की थी। पाण्डवों ने अज्ञातवास का समय हिमाचल की ऊपरी पहाड़ियों में व्यतीत किया था।

ऐसा वर्णित है कि कश्मीर, औदुम्बर और त्रिगर्त के शासक युधिष्ठिर को कर देते थे। कुलिंद रियासत ने पाण्डवों की अधीनता स्वीकार की थी। कुल्लू की कुलदेवी राक्षसी देवी हिडिम्बा का भीम से विवाह हुआ था।
महाभारत में वर्णित चार जनपद
1. त्रिगर्त
त्रिगर्त रावी, व्यास और सतलुज नदियों के बीच का भाग था। त्रिगर्त जनपद की स्थापना 8वीं ई.पू. से 5वीं ईसा पूर्व के बीच भूमिचन्द्र ने की थी। भूमिचन्द्र की पीढ़ी के 231वें राजा सुशर्मचन्द्र ने पाण्डवों को अज्ञातवास में शरण देने वाले मत्स्य राजा ‘विराट’ पर आक्रमण किया था जो कि उनका पड़ोसी राज्य था। सुशर्मचन्द्र ने महाभारत युद्ध में कौरवों की सहायता की थी।

कौरवों की हार के पश्चात सुशर्म चन्द्र ने काँगड़ा के किला का निर्माण करवाया तथा नागरकोट को अपनी राजधानी बनाया। कनिष्क ने 6 राज्य समूहों को त्रिगर्त का हिस्सा बताया था। कौरव शक्ति, जलमनी, जानकी, ब्रह्मगुप्त, डन्डकी और कौन्दोप्रथा त्रिगर्त के हिस्से थे। त्रिगर्त का वर्णन पाणिनी के ‘अष्टाध्यायी’, कल्हण के ‘राजतरंगिणी’, विष्णु पुराण, बृहत्संहिता तथा महाभारत के द्रोणपर्व में मिलता है। पाणिनी ने त्रिगर्त को आयुध जीवी संघ कहा है जिसका अर्थ है युद्ध के सहारे जीने वाला संघ।
2. औदुम्बर

महाभारत में औदुम्बर को विश्वामित्र के वंशज बताया गया है। ये कौशिक गौत्र से सम्बन्धित हैं। अदुम्बर वृक्ष की बहुलता के कारण यह जनपद औदुम्बर कहलाया। औदुम्बर राजा के सिक्के काँगड़ा, पठानकोट, ज्वालामुखी, गुरदासपुर और होशियारपुर के क्षेत्रों में मिले हैं जो उनके निवास स्थान की पुष्टि करते हैं। ये लोग शिव की पूजा करते थे। ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि में औदुम्बरों के सिक्कों पर ‘महादेवसा’ शब्द का उल्लेख मिलता है जो ‘महादेव’ अर्थात् भगवान शिव का प्रतीक है। औदुम्बर जाति का विवरण पाणिनी के ‘गणपथ’ में भी मिलता है।
3. कुलिंद
कुलिंदों का वर्णन पुराणों में मिलता है। महाभारत, विष्णु पुराण, वायु पुराण और मार्कण्डेय पुराण में कुलिंदों को कुनिंद कहा गया है। यमुना नदी का पौराणिक नाम ‘कालिन्दी’ है। इसके तट पर पड़ने वाले क्षेत्र को कुलिंद कहा गया है। इस क्षेत्र में उगने वाले ‘कुलिंद’ (बहेड़ा) के वृक्षों की अधिकता के कारण भी इस जनपद का नाम कुलिंद पड़ा होगा।

महाभारत में वर्णित है कि कुलिंद पर अर्जुन ने विजय प्राप्त की थी। कुलिंद राजा सुबाहू ने राजसूय यज्ञ में युधिष्ठिर को उपहार भेंट किए थे। कुलिंद रियासत व्यास, सतलुज और यमुना के बीच की भूमि थी जिसमें सिरमौर, शिमला, अम्बाला और सहारनपुर के क्षेत्र सम्मिलित थे। वर्तमान समय के ‘कुनैत’ या ‘कनैत’ का सम्बन्ध कुलिंद से माना जाता है। कुलिंद के चाँदी के सिक्के पर राजा ‘अमोघभूति’ का नाम खुदा मिला है।
4. कुल्लूत

कुल्लूत का विवरण रामायण, महाभारत और मत्स्य पुराण में मिलता है। यह राज्य व्यास नदी के ऊपर का हिस्सा था। इसकी प्राचीन राजधानी ‘नग्गर’ थी जिसका विवरण पाणिनी की ‘कत्रेयादी गंगा’ में मिलता है। कुल्लूत रियासत की स्थापना प्रयाग (इलाहाबाद) से आये ‘विहंगमणि पाल’ ने की थी। कुल्लू घाटी में राजा विर्यास के नाम से 100 ईस्वी का सबसे पुराना सिक्का मिलता है। इस पर ‘प्राकृत’ और ‘खरोष्ठी’ भाषा में लिखा गया है।
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