History of Himachal Pradesh
हिमाचल प्रदेश का इतिहास अत्यधिक प्राचीन है। यहाँ से मानव की प्रारम्भिक गतिविधियों का पता मिलता है। अपनी प्रारम्भिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य जिन उपकरणों को उपयोग में लाता है उन्हीं के आधार पर उस युग के प्रथम इतिहास की रूपरेखा बाँधी जाती है। अतः भारत के इस पहाड़ी प्रदेश का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना मानव अस्तित्व का अपना इतिहास है. इस बात की सत्यता इस प्रदेश में प्राप्त प्राचीन उपकरणों, औजारों एवं अन्य प्रमाणों से सिद्ध होती है।

हालाँकि इस राज्य के इतिहास लेखन में सबसे बड़ी कमी यहाँ पर इतिहास से सम्बन्धित सामग्री का अभाव है। राज्य में किसी भी काल का क्रमबद्ध और पूर्ण विवरण उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में उपलब्ध आधार संस्कृत साहित्य, यात्रा विवरण, प्राचीन काल के सिक्के, अभिलेख तथा वंशावलियाँ प्रमुख हैं। इन सब तथ्यों को सामने रखकर एक वैज्ञानिक ढंग से इतिहास की रचना करने का प्रयास किया गया है।
Material (साहित्य)
हिमाचल प्रदेश के इतिहास अध्ययन के लिए संस्कृत साहित्य का अहम् योगदान रहा है। इस साहित्य के अंतर्गत वैदिक ग्रंथों, पुराणों में यहाँ के लोगों के सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन का वर्णन किया गया है। इसके अलावा इन प्राचीन ग्रंथों में यहाँ के भूगोल पर भी प्रकाश डाला गया है । यद्यपि प्रमुख घटनाओं का क्रम भ्रान्तिपूर्ण व कल्पनायुक्त लगता है।

‘रामायण’, ‘महाभारत’, ‘वृहत्संहिता’, पाणिनी की ‘अष्टाध्यायी’, कालिदास का ‘रघुवंशम्’, विशाखदत्त की ‘मुद्राराक्षस’, ‘देवीचन्द्रगुप्त’ आदि में हिमालय में निवास करने वाली जनजातियों का विवरण मिलता है। इसके अलावा कल्हण की ‘राजतरंगिणी‘ विशेष उपयोगी है। इसका रचना काल 1150 ईसवी के आस-पास है। कल्हण कश्मीर के नरेश राजा जयसिंह के दरबार में रहता था। पूज्यभट्ट व उसके शिष्य शुष्क के इतिहास ग्रन्थ में भी कश्मीर के साथ लगते हिमाचल के क्षेत्र का वर्णन प्राप्त होता है।
इसके अलावा ‘तारीख-ए-फिरोजशाही‘ और ‘तारीख-ए फरिश्ता‘ में नागरकोट किले पर फिरोजशाह तुगलक के हमले का प्रमाण मिलता है। ‘तुजुक-ए-जहाँगीरी’ में जहाँगीर के काँगड़ा आक्रमण तथा ‘तुजुक-ए-तैमूरी‘ से तैमूर लंग के शिवालिक पर आक्रमण की जानकारी प्राप्त होती है।
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