सिकंदर के आक्रमण के पश्चात् चन्द्रगुप्त मौर्य ने भारत में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। विविध स्रोतों के अनुसार, नन्दवंश को समाप्त करने के लिए चाणक्य ने इस क्षेत्र के राज्य त्रिगर्त जालन्धर के राजा पर्वतक या पर्वतेश से सन्धि करके सहायता माँगी थी। जैन ग्रन्थ ‘परिशिपर्वन’ में उल्लेख मिलता है। कि चाणक्य हिमवत्कुट आया था। ऐसा ही बौद्ध वृत्तान्तों में कहा गया है कि चाणक्य का पर्वतक नामक एक घनिष्ठ मित्र था।
विशाखदत्त के मुद्राराक्षस के अनुसार किरात, कुलिंद और खस आदि युद्धप्रिय जातियों ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में भर्ती होकर नन्दवश को समाप्त करने में योगदान दिया। चन्द्रगुप्त मौर्य ने बाद में इन पहाड़ी राज्यों पर कब्जा करने का प्रयास किया जिसका कि कुल्लूत के राजा चित्रवर्मन सहित पाँच राजाओं ने मिलकर विरोध किया। तत्कालीन कुलिंद राज्य को मौर्य राज्य ने शिरमौर्य की संज्ञा दी। शायद यह संज्ञा इसलिए दी गई थी, क्योंकि कुलिंद राज्य मौर्य साम्राज्य के पूर्वी शीर्ष पर स्थित था। कालान्तर में यह शिरमौर्य सिरमौर बन गया।
चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र अशोक ने नेपाल, कुमाऊँ, गढ़वाल, हिमाचल प्रदेश और कश्मीर आदि में फैले हिमालय क्षेत्र को अधिकृत कर लिया था, परन्तु राज्यव्यवस्था के लिए वहाँ के स्थानीय शासकों को वहीं का प्रबन्धक नियुक्त किया। इतिहासकारों का मत है कि अशोक ने जिस साम्राज्य को उत्तराधिकार में प्राप्त किया था, उसमें पहले से ही हिमाचल तक का विस्तृत क्षेत्र शामिल था। इस तथ्य के सम्बन्ध में साहित्यिक और पुरातात्विक दोनों साक्ष्य मिलते हैं।
अशोक ने युद्ध विजय के स्थान पर धर्म विजय का अभियान चलाया और बौद्ध धर्म का प्रचार किया। उसने इस पर्वतीय प्रदेश में आचार्य मज्झिम को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा। ह्वेनसांग (629-644 ई.) के विवरण से ज्ञात होता है कि भगवान बुद्ध भी इस क्षेत्र में आए थे। उसके अनुसार महात्मा बुद्ध ने काँगड़ा और कुल्लू के अलावा अन्य कई स्थानों पर अपने धर्म का प्रचार किया था। ह्वेनसांग के अनुसार सम्राट अशोक ने काँगड़ा तथा कुल्लू में भगवान बुद्ध की याद में स्तूप बनवाया था।

महावंश के अनुसार इस पहाड़ी प्रदेश में अशोक ने पाँच राज्यों में बौद्ध धर्म का प्रचार करवाया। वास्तव में, अशोक के समय तक इन क्षेत्रों में अनेक बौद्ध तीर्थ स्थान विकसित हो चुके थे। भगवान बुद्ध पहले ही स्वयं आकर इस क्षेत्र को पवित्र कर चुके थे। इसलिए अशोक ने इन स्थानों पर अनेक बौद्ध स्मारकों का निर्माण करवाया। आज भी धर्मशाला के निकट चैतडू नामक स्थान पर अशोक द्वारा निर्मित स्तूप स्थित है। ह्वेनसांग के समय में यह स्तूप 200 फुट ऊँचा था । इस क्षेत्र के दूसरे स्तूप का विवरण ह्वेनसांग के यात्रा – वृत्तान्त से मिलता है। यह शायद कुल्लू में कलथ नामक ग्राम के आस-पास स्थित था।
महापण्डित कात्यायन ने हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा क्षेत्र में भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 300 वर्ष पश्चात् ‘अभिधर्म ज्ञान प्रस्थान’ शास्त्र की रचना की। कुल्लू घाटी में बौद्ध विहारों का ही निर्माण नहीं हुआ, बल्कि साहित्य के क्षेत्र में भी काफी उन्नति हुई। शिमला, सोलन, सिरमौर आदि क्षेत्रों में बौद्ध धर्म का प्रचार काफी सीमा तक पहले ही हो चुका था।
ह्वेनसांग के अनुसार सम्भवतः ये क्षेत्र सुहन नामक राज्य के अधीन आते थे, जो कालसी से बहुत दूर नहीं था। सुहन राज्य की राजधानी का ज्ञान भी संदिग्ध ही लगता है। शायद यह कालसी (उत्तराखण्ड) के आस-पास ही स्थित थी। अशोक ने यहाँ भी एक स्तूप का निर्माण करवाया था। कालसी में अशोक कालीन शिलालेख पाए गए हैं।
Historical Sources of Himachal Pradesh | हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक स्रोत
Himachal history | महाभारत काल और चार जनपद
HP HISTORY : सिकंदर का आक्रमण Alexander’s Invasion
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