जब पहाड़ी रियासतें मुगल शासन के सम्पर्क में आईं तब सुधारों के कारण मुगल-राजपूत सैन्य प्रविधि का चलन, प्रशासन, कलाओं और साहित्य का नया रूप हिमाचल प्रदेश की रियासतों में देखने को मिला। मुगल सिक्के पहाड़ों में प्रचलित हो गए और अकबर की सोने की मुहरें खजानों में जमा की जाने लगी।
मुगल काल में वास्तुकला
■ मुगल तकनीक एवं वास्तुकला से अनेक किलों का निर्माण किया गया। नूरपुर का किला राजा बासु द्वारा निर्मित किया गया।
■ राजा बासु के समय के पुराने किले में स्तम्भ और टेक लाहौर के किले में बनी मुगल इमारतों जैसे हैं तथा दीवारों में बने खम्भों की सजावट भी वैसी ही है। उसके कुछ पैनलों पर डिजाइन मुगल शैली के हैं। बाहरी दीवारों पर पैनलों पर बहुत यथार्थवादी शैली में बत्तखें, मोर, हिरण, तोते और मानव के हाथ अत्यन्त स्वाभाविक बन पड़े हैं, जो लाहौर के किले में स्थित भवनों पर की गई पच्चीकारी से मिलते हैं। स्तम्भ ईंटें और सजावट सभी हिन्दू-मुस्लिम शैली में बने हैं, जो अकबर और जहाँगीर के काल में प्रचलित थे।
■ भरमौर में स्थित भवन के लकड़ी के बने दरवाजों पर उभरे हुए आकारों वाले पैनल हैं, जिन पर मुगल काल का गहरा प्रभाव जामों, पगडण्डियों, मुद्राओं और पृष्ठभूमि के अंकन में देखा जा सकता है।
■ मुगलों से पूर्व की पहाड़ी निर्माण कला निश्चय ही मैदानों में प्रचलित निर्माण कलाओं का मिश्रण थी। तुगलक शैली का कुछ परिवर्तित रूप पहाड़ी क्षेत्र में देखने को मिलता है, लेकिन मुगलों की प्रभुसत्ता स्थापित हो जाने के पश्चात् स्वाभाविक रूप से पहाड़ी कलाओं में ज्यादा परिवर्तन हुआ, क्योंकि अन्य मुसलमान शासकों की अपेक्षा मुगलों के पहाड़ी राजाओं से निकट के सम्बन्ध थे।
■ मुगल दरबार की कलाओं और वास्तुशिल्प का अनुसरण करना सुसंस्कृत होने का प्रतीक माना जाने लगा था। इसलिए अकबरकालीन हिन्दू-मुस्लिम मिश्रित वास्तुकला का पहाड़ी राजाओं पर अधिक प्रभाव पड़ा।
मुगल काल में चित्रकारी
■ इस काल की चित्रकारी और लकड़ी की नक्काशी में कला का रूप स्पष्ट है। मुगल कपड़ों और पोशाकों ने भी पहाड़ी लोगों को अत्यधिक प्रभावित किया। राज-परिवारों में आज भी मुगल काल के चोगे चलन में हैं।
■ अनेक मुस्लिम विद्वान् अपने साथ अरबी लिपि में उर्दू भी पहाड़ों में लेकर आए। अनेक राजाओं ने उर्दू को अपनी दरबारी भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया था तथा सम्पूर्ण अभिलेख उर्दू में लिखे जाते थे।
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