1627 ई. में शाहजहाँ के गद्दी पर बैठने के बाद जगत सिंह का मनसब फिर सुनिश्चित कर दिया गया। 1634 ई. में उसे बंगाल का थानेदार बनाया गया जोकि कुरजम घाटी में है। उसे कोहाट में विद्रोहियों को दबाने का काम भी सौपा गया। तीन वर्ष पश्चात् उसे काबुल प्रान्त से जोड़ दिया गया और एक वर्ष पश्चात् वह पुनः लाहौर लौट आया, जहाँ उसको बादशाह ने सम्मानित किया और बंगाल का फौजदार बना दिया।

नवाब असदुल्ला खान और कोच कुलीखान शाहजहाँ के शासन काल में काँगड़ा किले के मुगल किलेदार बने। कोच कुलीखान 17 वर्षों तक मुगल किलेदार रहा। उसे बाण गंगा नदी के पास दफनाया गया था। सिरमौर का राजा मन्धाता प्रकाश ने मुगलों के गढ़वाल अभियान में कई बार उनकी सहायता की थी। वह शाहजहाँ का समकालीन था।
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