जहाँगीर (Jahangir) 1605 ई. में गद्दी पर बैठा। जहाँगीर (Jahangir) ने नूरपुर (धमेरी) के राजा सूरजमल और शेख फरीद मुर्तजा खान को 1615 ई. में काँगड़ा पर कब्जा करने के लिए भेजा परन्तु दोनों में विवाद होने और मुर्तजा खान की मृत्यु होने के बाद काँगड़ा किले (काँगड़ा के राजा बिधीचंद की 1605 ई. में मृत्यु हुई और उसका पुत्र त्रिलोकचंद गद्दी पर बैठा। पर कब्जा करने की योजना को स्थगित कर दिया गया।
जहाँगीर (Jahangir) ने 1617 ई. में फिर नूरपुर के राजा सूरजमल और शाह कुली खान मोहम्मद तकी के नेतृत्व में काँगड़ा विजय के लिए सेना भेजी। राजा सूरजमल और शाह कुली खान में झगड़ा हो जाने के कारण कुली खान को वापस बुला लिया गया। राजा सूरजमल ने मुगलों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। जहाँगीर ने सूरजमल के विद्रोह को दबाने और किले को जीतने के लिए राजा विक्रमजीत और अब्दुल अजीज को भेजा।

शाही सेनाओं द्वारा दबाव डालने पर सूरजमल को मऊ के किले में शरण लेनी पड़ी। राजा विक्रमजीत ने किले पर विजय प्राप्त की। सूरजमल मऊ के किले से भागकर तारागढ़ के किले में पहुँचा जो कि चम्बा के अधीन था। लम्बे समय तक किले की घेराबन्दी के पश्चात् सूरजमल पराजित हुआ और वह चम्बा भाग गया।
अन्ततः 1619 ई. में वहीं उसकी मृत्यु हो गई। उसकी सम्पूर्ण सम्पत्ति पर मुगल बादशाह ने अधिकार कर लिया। काँगड़ा किले को जीतने में राजा सूरजमल के छोटे भाई जगत सिंह ने मुगलों की मदद की।
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हिमाचल इतिहास और जहाँगीर, Himachal History and Jahangir
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